
18 सीज़न वाला क्राइम शो Criminal Minds ने दर्शकों को Serial Killer की मनोवैज्ञानिक गहराईयों तक ले जाकर एक अनोखा अनुभव दिया है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि हर किरदार और घटनाक्रम पर एक मोहल्ले की जांच वाली आंटी की तरह बारीकी से पहरा दिया गया है। लेकिन बावजूद इसके, इसे उस सम्मान और तारीफ नहीं मिली जिसकी वह हकदार था।
जलन की पहली चिंगारी
इस लंबे और विस्तृत शो में इतनी मेहनत और रिसर्च ज़ोर देती है कि हमारे आम मोहल्ले की गपशप भी फीकी लगे। पड़ोस की आंटियाँ तो इसे देख-देख कर चोरी-छिपे चोरी वाले मामलों तक सुलझा बैठीं, पर शो को लोकप्रियता की अपेक्षित ऊंचाई नहीं मिली। लोग इसे अक्सर “कहानी बड़ी बनावटी” कहते हैं, जबकि वास्तव में यह सीरियल किलर के दिमाग की गहराइयों में उतरता है।
इन्फ्लुएंसर्स vs. आम आदमी
जहां सोशल मीडिया पर दूसरों की दिखावा वाली याज्ञिक तस्वीरें चलती हैं, वहां Criminal Minds की भव्य मेहनत और ज्ञान को कमतर समझा जाता है। आम आदमी अपने IQ की तुलना इस शो की मुश्किल परिस्थितियों से करता है और जलन ज़ाहिर करता है। वह बोर हो जाता है और शो की विद्वता को गले नहीं उतार पाता।
सोशल मीडिया का असर
सोशल मीडिया पर क्रिमिनल साइकोलॉजी के विशेषज्ञों ने इस शो की खूब समीक्षा की, लेकिन असली मज़ा तो पड़ोस की चाय-पानी वाली गपशप में है जहाँ हर ट्विस्ट पर वह चर्चा जोरों पर रहती है। यही असली वायरलिटी का राज है।
आंटी लोगों की आलोचनाएँ
मोहल्ले की आंटीजन व्हाट्सएप ग्रुप में अक्सर विवाद करती हैं कि इतने सालों तक इस शो को क्यों विजेता नहीं माना गया। पिंकी आंटी कहती हैं, “इतना किरदार गढ़ना आसान नहीं, मनो जूरीकंडीशनर भी पिघल गया।” इस प्रकार की आलोचनाएँ शो के प्रति उनके प्यार और सम्मान का सबूत हैं।
निष्कर्ष
Criminal Minds अपने प्रकार में उफ्फ-लायक है, पर उसे वह सम्मान नहीं मिला जो वास्तव में चाहिए था। जब भी नया ग्लैमरस सीरियल आए, तो इस शो की मेहनत और गहराई याद रखनी चाहिए। आखिरकार, ये केवल एक शो नहीं बल्कि एक जटिल और समर्पित प्रयास है।
और अब हम भी दही-शक्कर खाकर लाइक्स बटोरने की तैयारी करते हैं!