September 13, 2025
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90 के दशक की फिल्मों की चमक-दमक के पीछे छिपी होती थी कभी-कभी कड़वी सच्चाई। रवीना टंडन, जो आज हर किसी की पसंदीदा अभिनेत्री हैं, वे भी उस दौर के जाति और शारीरिक टिप्पणियों से अछूती नहीं रहीं। जब ‘थंडर थाइज़’ जैसे अपमानजनक शब्द उनके लिए इस्तेमाल किए गए, तो यह महज एक व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं बल्कि उस जमाने के गॉसिप मैगज़ीन की क्रूरता और निर्भया बयानबाज़ी को दर्शाता है।

जलन और आलोचना की शुरुआत

90 के दशक की उन जहर भरी बातों में, एक आम बात थी—अभिनेत्रियों के शरीर और उनके चयनित भूमिकाओं पर सीधे-सीधे ताने। इस व्यंग्य से न केवल रवीना टंडन बल्कि उनके साथ ही कई युवा कलाकार प्रभावित हुए। मोहल्ले की चुगली हो या गॉसिप में भरी कटु टिप्पणियाँ, दोनों का उद्देश्य ही था उनकी आत्म-छवि को चोट पहुँचाना।

मोहल्ले की टिप्पणियाँ और सामाजिक प्रभाव

  • गुड्डू की मम्मी का रोक-थाम था 180° टेढ़ा: जब रवीना जैसे सितारे तक इन तानों से बच नहीं पाते, तो आम लोग क्या उम्मीद करें?
  • चुगली का असर: इन बातों का असर पड़ोस की आंटियों की बातचीत में भी नजर आता था, जो सफलता के साथ बहेरे दुष्प्रचार को भी चाशनी में डूबे जलेबी जैसा कहती थीं।

टेक्नोलॉजी के दौर में बदलाव

अगर अब का समय 90 के दशक जैसा सोशल मीडिया नहीं होता, तब भी इंफ्लुएंसर्स और आम लोग दोनों शरीर और छवि के लिए आलोचना के दायरे में होते। इंस्टाग्राम के दौर में भी जलन और आलोचना कम नहीं हुई है, बस माध्यम बदल गया है।

सोशल मीडिया और पुराने गॉसिप मैगज़ीन का तुलनात्मक असर

  1. दोनों के तरीके: दोनों ही समाज में जलन पैदा करते हैं, चाहे वे पुराने मैगज़ीन हों या नए डिजिटल प्लेटफॉर्म।
  2. रवीना की जीत: बावजूद आलोचनाओं के, रवीना ने अपने जलन-वार को झेला और अपनी जगह बनाई।
  3. लोकप्रियता के साथ चुनौतियाँ: उनके संघर्षों ने मोहल्ले की आंटी के तानों को भी पराजित किया।

मोहल्ले की आंटीज़ और उनका नजरिया

उनकी चुगली तो अक्सर पसंदीदा सुपरस्टार के संघर्ष की गहराई को उजागर करती है। आंटी लोग आज भी मानती हैं कि रवीना का नाम तो बड़ा हुआ, लेकिन बचपन झूठे तानों की आग में बीता। सीधे शब्दों में यह दिखाता है कि सामाजिक आलोचना का सामना करना कितना मुश्किल रहा।

निष्कर्ष

भले ही जलन और ताने कभी-कभी चाशनी में डूबे जलेबी की तरह लगें, वे मशक्कत और प्रयास से बने सितारों की चमक को कम नहीं कर पाते। रवीना टंडन ने उस दौर के सारे ताने झेले और चमकती रहीं, जो आज भी प्रेरणा स्रोत हैं। इसलिए जब भी मोहल्ले की चुगली सुनें, उसके पीछे के महत्व को समझें और उनकी मेहनत को सलाम करें।

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